Sunday, January 22, 2012

mithila anveshan

मिथिला अन्वेषण

प्रो. कृष्ण कुमार झाअन्वेषक"

भा. वि. भवन संस्कृत महाविद्यालय, मुंबई-

पुराण प्रमाणित मिथिला

देशेषु मिथिला श्रेष्ठा गङ्गादि भूषिता भुविः

द्विजेषु मैथिलः श्रेष्ठः मैथिलेषु श्रोत्रिय

गङ्गा-कोशी - गण्डकी-कमला-त्रियुगा-अमृता-वागमती-लक्ष्मणा आदि नदी सँ भूषित मिथिलाक श्रेष्ठता वेद-पुराण-उपनिषद-दर्शन ऋषि प्रमाण सँ सर्वथा प्रमाणित अछि एहि प्रान्तक सभ्यता - संस्कृतिक प्राचीनता स्वतः सिद्ध अछि षड्दर्शन (न्याय-वैशेषिक-सांख्य-योग- मीमांसा-वेदान्त) मे सँ चारि दर्शनक उद्भव स्थली मिथिला अनेक मैथिल महापुरुषक सुदीर्घ मणिरत्नक परम्परा सँ पूर्ण अछि अपन मानसमंथन सँ मैथिल मनीषी लोकनि जे किछु प्राप्त कएलन्हि समग्र विश् के लेल अनुकरणीय अछि मिथिलाक वैशिष्ट् एवं प्रशस्ति मूलक श्लोक मे तीरभुक्तिक (तिरहुतक) महात्म्य वर्णित अछि

जाता सा यत्र सीता सरिदमल जला वाग्वती यत्रपुण्या ।

यत्रास्ते सन्निधाने सुर्नगर नदी भैरवो यत्र लिङ्गम्‌ ॥

मीमांसा-न्याय वेदाध्ययन पटुतरैः पण्डितेमर्ण्डिता या ।

भूदेवो यत्र भूपो यजन-वसुमती सास्ति मे तीरभुक्‍तिः ॥

जगत-जननी सीताक उत्पत्ति भूमि तिरहुत अर्थात्वैदिक मान्यता के अनुसार तीन वेदक (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद) ज्ञाता अथवा त्रिवेद सँ आहुति देवयवला जाहि भूभाग पर निवास करैत छथि निर्मल जल सँ परिपूर्ण मीमांसा-न्याय वेदादि अध्ययन मे पटु सँ पटुतर-विद्वत मनीषि सुशोभित जाहि भूभागक शासक यज्ञकर्त्ता पण्डित छथि तिरहुत धन्य अछि

देवी भागवत मे मिथिलाक प्रजाक सदाचार समृद्धिक मनोरम वर्णन कएल गेल अछि :-

प्रविष्टो मिथिला मध्ये पश्यन्‌ सवर्द्धिमुत्तमाम्‌ ।

प्रजाश्‍च सुखिताः सर्वाः सदाचाराः सुसंस्थिता ॥

विदेहराज जनक, मण्डन, अयाची-याज्ञवल्क्यक मिथिला मे आदिकाल सँ अध्ययन-अध्यापन लेखन-मनन के यजन के सम्मान प्राप्त अछि व्याकरण वेदान्त-मीमांसा-न्याय-तंत्र-साहित्य-संगीत आदि विषयक पाण्डित्यपूर्ण परम्पराक अक्षय ज्ञान कोष सँ सदैव नवनवोन्मेष शालिनी प्रज्ञा, ज्ञान-विज्ञानक ग्रंथ सँ परिपूर्ण अछि मिथिलाक विद्यागार

अयाची मिश्रक गाम सरिसो पाही

“कलौ स्थानानि पूज्यन्ते"

एहि आर्षवाक्य प्रमाण सँ ज्ञात होइत अछि जे कलिकाल मे व्यक्ति भूषित स्थानक गरिमा सर्वोपरि अछि देवस्थानक प्रति लोकक असीम अनुराग आओर गाम-तीर्थक पूजा एहि तथ्य के परिपुष्ट करैत अछि पण्डित अयाची-शंकर सचल मिश्रक जन्मभूमि मिथिला मध्य अवस्थित पाही युक् सरिसो गाम के नमन करैत ओहि ठामक सुदीर्घ विद्धत परम्परा के कोटि-कोटि प्रणाम

सरिसवक गौरवमय इतिहास अतीतक जीवन दर्शन बनि एखनहु विराजमान अछि सरिसब शब्दक शाब्दिक अर्थ संस्कृतक सर्षप शब्द सँ निष्पन्न अछि एवं एकर पर्यायवाची सिद्धार्थ होइत अछि तैं एहि क्षेत्र के सिद्धार्थ क्षेत्र अर्थात्मैथिली सरिसबक खेत कहल गेल अछि गामक नामकरण सँ ज्ञात होइत अछि जे एहि ठामक भूमि उपजाऊ छल, उर्वरा युक् एहि प्रान्त मे सरिसवक खेती प्रचुर मात्रा मे होइत छल सात खण्ड (टोल) मे विराजमान एहि गामक समीपवर्ती कोइलख, भौर-रैयाम-लोहना, पण्डौल-भगवतीपुर आदि उन्नत परम्पराक द्योतक अछि सरिसव एहि सव मे प्राचीन अछि भगवान श्री कृष्णक अग्रज श्री बलभद्र जीक साधना स्थली अछि स्कन्द पुराणक नागर खण्ड मे कपिल मुनिक-आश्रम सिद्धार्थ क्षेत्रक समीप होयबाक वर्णन भेटैत अछि तदनुसार वर्तमान कपिलेश्वर स्थान सौराठ सभा सँ दू कोस दक्षिण पश्चिम मे विराजमान अछि आऽ एखनहु मिथिला प्रान्त मे श्रद्धाक स्थान प्राप्त केने अछि जहिना बाबाधाम (देवधर) मे शिवभक् सुल्तान गंज सँ गङ्गाक जल भरि काँवर लऽ कऽ जाइत छथि तहिना असंख्य श्रद्धालु शिवभक् जयनगर मे कमला सँ जल भरि श्रावणक सव सोम कऽ कपिलेश्वर स्थान जाइत छथि सरिसो एहि स्थान सँ दू योजन पश्चिम मे अवस्थित अछि एहि गामक समीप मधुबनी सँ पूर्व भगवतीपुर मे भुवनेश्वरनाथ महादेव विराजमान छथि स्थान मिथिलाक प्राचीन सिद्धपीठ मे सँ एक अछि प्राचीनकाल मे एहि गाम के अमरावतीक प्रतीक मानल जाइत छल

एखनहु एहि ठामक भूमि सँ यदा-कदा उत्खननक परिणाम स्वरूप प्राचीन स्वर्णमुद्रा, पूजनसामग्री गृहस्थाश्रमोपयोगी वस्तु प्राप्त होइत रहैत छैक, जे एहि बातक द्योतक अछि कि प्राचीन काल मे एहि ठाम गाम-नगर-मन्दिर तड़ाग सँ युक् आर्य सभ्यता विराजमान छल एक अनुमानक अनुसार हर्षवर्धन के साम्राज्यक पतन भेला पर महाराज अरुणाश् के विरुद्ध तिब्बती आक्रमण के समय एहि प्रान्त मे भयंकर नरसंहार भेल छल आक्रमणकारी अपार धन-सम्पत्ति लूटि कऽ लऽ गेल छल, परंच मिथिलाक एहि प्रान्तक माटि मे व्याप्त विद्या वैभव के लऽ जएबा मे समर्थ नहि भऽ सकल

मिथिला मे कर्णाट वंशीय क्षत्रिय वंशक अन्तिम राजा पञ्जी प्रवर्तक महाराज हरिसिंह देवक अनुसार मिथिलाक एहि क्षेत्र मे विराजमान सरिसब मे ग्यारहवी शताब्दिक पूर्वार्द्ध भाग मे सामवेद कौथुम शाखाक शाण्डिल गोत्रीय महामहोपाध्याय रत्नापाणिक निवासक वर्णन भेटैत अछि हरिसिंह देवक समय तेरहवीं शताब्दीक मानल जाइत अछि

विष्णु पुराण हरिवंश पुराण मे स्यमन्तक मणि उपाख्यान मे श्री बलभद्रक मिथिला प्रवासक वर्णन भेटैत अछि एक कथाक अनुसार भी बलभद्र जी अनुज श्री कृष्ण सँ रुसि कऽ मिथिला आवि गेल छलाह तीन वर्ष धरि एहिठामक विभिन्न क्षेत्र मे भ्रमण करैत रहलाह अपना प्रवासक समय मिथिलाक अनेक प्रान्त मे देवी-देवताक स्थापना कय साधना केने छलाह महाभारत युद्ध सँ पूर्व किछु दिन तक सिद्धार्थ क्षेत्रक एहि सरिसब गाम के अपन साधना भूमि बनौने छलाह एवं एहि गामक ग्रामदेवी माता सिद्धेश्वरी गामक पश्चिम मे सिद्धेश्वर नाथ महादेवक स्थापना कएने छलाह एक किंवदन्ती के अनुसार एहि सिद्ध क्षेत्र मे दुर्योधन श्री बलभद्र जी सँ गदाक शिक्षा प्राप्त केने छलाह वृहद्विष्णुपुराण मे बलभद्र द्वारा स्थापित माता सिद्धेश्वरीक वर्णन भेटैत अछि

महामहोपाध्यायक परम्परा सँ पूर्ण गाम एखनहु भगवती भारतीक अभ्यर्थना मे लागल अछि सरस्वतीक कृपास्थलीक माटिक महत्व सुदूर प्रान्तक लोक के द्वारा अपना पुत्र-पुत्रीक अभिलेख संस्कारक (अक्षरारम्भ संस्कार) दिन उत्तम संस्कारक हेतु एहिठामक माटि जयवाक प्रथा सँ प्रतिपादित अछि जनक, याज्ञवल्क्य आदि ऋषि द्वारा प्रशंसित सरिसव गामक उत्कर्षक वर्णन अल्प विषय मति सँ सम्भव नहि अछि, तथापि स्वनाम धन्य श्री भवनाथ मिश्र जे अपन त्यागपूर्ण अयाचित जीवन प्रणाली सँ अयाची मिश्रक उपाधि युक् संज्ञा प्राप्त केने छलाह, हुनकर गाम सरिसबक वर्णन हेतु अयाची-शंकर-सचल महामहोपाध्याय डा. सर गङ्गानाथ झा आदि प्रेरणाक श्रोत बनि लेखनी के अग्रसारित कऽ रहल छथि

दन्तकथाक अनुसार हुनका मात्र सवा कट्ठा जमीन छलैन्ह जाहि मे उत्पन्न साग-कन्दमूल अन्न आदि सँ निर्वाह करैत छलाह अपना निर्वाहक वास्ते ककरो सँ कोनो प्रकारक याचना नहिं करैत छलाह, तैं हुकर नाम अयाची भेल हुनक पुत्र श्री शंकर मिश्र जिनका बाल प्रतिभा-अर्थात्अपूर्ण पञ्चम वर्ष मे त्रिलोकक वर्णन करबाक गौरब प्राप्त छैन्ह मिथिलाक पाण्डित्य परम्पराक आदर्श पुरुष मानल जाइत छथि किंवदन्ती के अनुसार श्री शंकर मिश्रक एकटा रोचक कथा मिथिला मे प्रचलित अछि तदनुसार हिनक जन्म के समय अयाची मिश्र घाइ के पुरस्कार मे बालकक प्रथम अर्जित धन देबाक वचन देने छल्खिन्ह श्री शंकर मिश्र अपन बाल्यावस्था मे राजसभा मे त्रिलोकक वर्णन कए राजा के द्वारा पुरस्कार मे प्रचुर धन प्राप्त कऽ जखन धन के पिता अयाची मिश्रक समक्ष प्रस्तुत कएलन्हि तखन बालकक जन्म के समय घाइ के देल-गेल वचन के पालन करबाक हेतु ओहि धन के घाइ के समर्पित कऽ देलखिन्ह ओहि धन सँ घाइ अनेक पोखरि-इनार, मन्दिर आदिक निर्माण कएलक जे एखनहु विद्यमान अछि अयाचीक त्यागक कथा कहि रहल अछि श्री शंकर मिश्रक शिष्य परम्परा स्वयं के लेखनी सँ संकेतित अछि

श्लाद्यास्पदं यद्यपि नेतरेषा मियंकृतिः स्वादुहायोऽया

तथापि शिष्यै गुरुगौरवेन परः सहस्त्रैः समुपासनीया ॥

श्री शंकर मिश्रक विरचित श्लोकरसार्णव" नाम सँ प्रसिद्ध अछि पिता पुत्र सतत्‌ “काव्य शास्त्र विनोदेन कालोगच्छति धीमताम्‌" के सार्थक करैत शास्त्र चर्चा मे निमग्न रहैत छलाह श्री शंकर द्वारा रचित वैशेषिक सूत्रोपस्कार मे सूत्रकार कणाद अपन पिता भवनाथ (अयाची) मिश्रक स्मरण करैत लिखैत छथि:-

या भ्यां वैशेषिके तन्त्रे सम्यक्व्युत्पादितोऽस्यहम्

कणाद भवनाथा भ्यां ताभ्यां मम नमः सदा ॥

श्री शंकर मिश्रक विद्वत्ताक प्रतीक हुनक पाठशालाक नामचौपाड़िछलन्हि एहि चौपाड़ि पर उद्भट सँ उद्भट विद्वान अबैत छलाह सतत्शास्त्रार्थ होइत रहैत छल दूर-दूर सँ अध्ययनार्थी एहि पाठशाला मे अध्ययनार्थ अबैत रहैत छलाह अयाची शंकरक महिमा समग्र विश् मे प्रसरित अछि एखनहु एहि परिवारक वंशज नहि की मात्र भारत वर्ष मे अपितु समग्र विश् मे प्रसारित भऽ कऽ अध्यवसायी जीवन व्यतीत कऽ रहल छथि

मैथिल ब्राह्मण पञ्जी व्यवस्था

महाराज हरिसिंह देव के द्वारा मैथिल ब्राह्मण के आचार विचार व्यवहारक अनुसार श्रेणीबद्ध करबाक सत्प्रयास कएल गेल छल एतदर्थ एक समय महाराज हरिसिंह देव मिथिलाक सम्पूर्ण ब्राह्मण समाज के एक विशिष्ट भोज मे आमन्त्रित कएलन्हि आमन्त्रणक राज्यादेश मे स्पष्ट रूप सँ कहल गेल छल जे सव कियो अपन-अपन नित्य कर्म समाप्त कए भोजन के लेल आबथि भोजनोपरान्त समागत ब्राह्मण के श्रेणी क्रमक घोषणा कएल जाएत एहि आमन्त्रणक चर्चा सँ समस्त मैथिल ब्राह्मण समाज उत्साहित छलाह सबहक जिज्ञासाक विषय बनल एहि आमन्त्रण मे अपन-अपन उपस्थितिक आकुलता समस्त मैथिल ब्राह्मण समाज मे छल आमन्त्रणक उत्कष्ठा मे ओहि दिन सब कियो प्रातः काल सभा मे उपस्थित भऽ पञ्जी (उपस्थिति-पुस्तिका) मे अपन नाम लिखवाय आसनस्थ होइत गेलाह एहि प्रकार सँ सायंकाल धरि आगन्तुकक आगमन होइत रहल परञ्च तेरह विलक्षण कर्मकाण्डी ब्राह्मण सायं संध्या उपासना कएलाक पश्चात्सभास्थल पर अएलाह भोजनोपरान्तपूर्वागमन अधः न्याय" के अनुसार सब सँ पूर्व उपस्थित होवय वला ब्राह्मण के नाम श्रेणी क्रम मे सब सँ नीचा राखल गेल सब सँ बाद मे आबय वाला ब्राह्मणक क्रम सब सँ उपर घोषित भेल क्रम ब्राह्मणोचित सन्ध्या उपासना आदिक आधार पर देल गेल छल जे एखनहु मैथिल ब्राह्मण मे वैवाहिक सम्बन्धक समय कोटि निर्धारणक आधार मानल जाइत अछि

एहि क्रम मे सायं सन्ध्याक पश्चात्उपस्थित तेरह विलक्षण, कर्मकाण्डी, प्रतिभाशाली, त्रिकाल सन्ध्या उपासक वेदज्ञ वेदोक् रीति सँ जीवन यापन करयबला ब्राह्मण के अवदात (अर्थात्पूर्ण शुद्ध) संज्ञा देल गेलन्हि अवदात संज्ञाक तेरह कुल वेदाध्यायी श्रुतिमार्गसँ जीवन यापन करैत छलाह तैं मैथिल ब्राह्मणक एहि विशिष्ट शाखा के श्रोत्रिय कहल जाइत अछि आपस्तम्ब के अनुसार:- “वेदस्यैकैकां शाखामधीत्य श्रोत्रियो भवति", अर्थात्श्रोत्रिय उपाधि एहि बातक प्रमाण अछि कि ककर धारक कम सँ कम वेदक एक शाखा मे निष्णात छथि परञ्च कालक्रम सँ वेदाध्यायीक परिजन के श्रोत्रिय कहयवाक परम्परा चलि रहल अछि एखनहु श्रोत्रिय परिजन शुद्धतर देखल जाइत छथि श्रोत्रिय परिवार राँटी-मंगरौनी-पिलखवाड़-सरिसोपाही आदि स्थान मे अवस्थित छलाह ओहि ठाम सँ अन्यत्र सेहो विस्थापित भेलाह

वस्तुतः पञ्जी व्यवस्थाक उद्देश्य प्रायः विस्थापित परिवारक मूल आवास, संस्कृति परम्परा के रेखांकित करब छल तै ब्राह्मणक मूल मे मूलगामक समावेश कएल गेल अछि कालान्तर मे पुनः विस्थापित भेलाक पश्चात्ओहि गामक नाम सेहो जोड़ि देल गेल अछि जेना पाली गाँव मे रहनिहारक मूल भेल पलिवाड़ ओहिठाम सँ जे महिषी गेलाह से पलिवाड़ महिषी तहिना सरिसब गामक निवासी सरिसवे दरिहड़ के रहनिहार दरिहड़े अड़ै गामक निवासी अड़ैवाड़ आदि मूलक व्यवस्था पञ्जीरूप मे हरिसिंह देवक द्वारा कएल गेल अछ जे पञ्जीप्रबन्ध के नाम सँ विख्यात अछि

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